एक मिडलक्लास लड़की ने देश की नंबर-1 बिजनेस वुमन बनने का सपना देखा। लाखों की नौकरी ठुकराकर अपना काम शुरू करने के लिए दिनरात मेहनत की। पहले बिजनेस के लिए लोन नहीं मिला, दूसरा 5 साल में बंद करना पड़ा, लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसे खुद पर भरोसा था, वो देश की महिलाओं के लिए रोल मॉडल बनना चाहती थी। वो चाहती थी कि उसे देखकर देश की बेटियों का हौसला बढ़े और वे भी सफल बिजनेस वुमन बनें। देर से ही सही, उसकी मेहनत रंग लाई और ‘शुगर कॉस्मेटिक्स’ ब्रांड लॉन्च करके वह देश की तेजी से उभरती बिजनेस वुमन बन गई।

हम बात कर रहे हैं ‘शार्क टैंक इंडिया’ शो की पॉपुलर बिजनेस टाइकून विनीता सिंह की, जिन्हें देखकर लाखों महिलाएं बिजनेस वुमन बनने के सपने देखने लगी हैं। आइए, जानते हैं विनीता की कामयाबी की कहानी, उन्हीं की जुबानी:

महिलाएं प्रोडक्ट्स बना रहीं हैं और खरीद भी रही हैं
मैंने खुली आंखों से सपना देखा और अपने सपने को खुद साकार किया। सपना बड़ा था इसलिए संघर्ष भी बड़ा था, लेकिन आज पलटकर देखती हूं तो खुशी होती है। दिन-रात अपने सपनों का पीछा करना और उन्हें हासिल कर लेने तक हार न मानना, यही कामयाबी का एकमात्र मूलमंत्र है। आज मेरे साथ 2500 महिलाएं काम कर रही हैं। मैंने बचपन में सपना देखा कि ऐसा बिजनेस करूंगी, जिसमें प्रोडक्ट बनाने वाली भी महिलाएं हों और खरीदने वाली भी। मैं चाहती थी ऐसा काम किया जाए कि लगे ही नहीं काम कर रहे हैं, काम करने में इतना मजा आए कि वह बोझ न लगे। आज ‘शुगर कॉस्मेटिक्स’ के माध्यम से हम यही कर रहे हैं। हमने 2015 में यह ब्रांड लॉन्च किया और अभी इसका टर्नओवर करीब 500 करोड़ रुपए है। इस साल हमारा टर्नओवर का टारगेट 700 करोड़ रुपए है।

‘शार्क टैंक इंडिया’ ने मुझे लोगों से जोड़ा
मेरा ब्रांड बहुत जल्दी पॉपुलर हो गया, लेकिन लोग मुझे पर्सनली नहीं जानते थे। पॉपुलर शो ‘शार्क टैंक इंडिया’ में आने के बाद लोग मुझे जानने लगे। शार्क टैंक में आने की वजह ही यही थी कि मेरे जैसी उन तमाम लड़कियों का हौसला बढ़े जो अपने दम पर आगे बढ़ने के सपने देखती हैं। मैं ऐसी महिलाओं के काम आ सकूं जो अपने बिजनेस को आगे बढ़ाना चाहती हैं। मैं लोगों को अपने फेलियर की कहानी इसलिए सुनाती हूं ताकि उनका हौसला न टूटे। उन्हें ये पता चल सके कि बड़े सपने देखने के लिए संघर्ष भी बड़ा करना पड़ता है। जब मैंने शार्क टैंक शो के लिए ‘हां’ कहा तो मुझे अंदाजा नहीं था कि ये इतना हिट होगा। भारतीय दर्शकों के लिए ये एक नया कांसेप्ट था, लेकिन लोगों ने इसे बहुत पसंद किया। इससे ये पता चलता है कि भारतीय युवा बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे हैं जो हम सब के लिए गर्व की बात है।

कोई भी महिला बन सकती है बिजनेस वुमन
‘शार्क टैंक इंडिया’ शो के बाद लोग जब भी मुझे देखते हैं तो बिजनेस के बारे में बात करते हैं, लड़कियां मेरे साथ सेल्फी लेती हैं और कहती हैं, ‘आप हमारी रोल मॉडल हैं।’ इस शो ने मुझे लाखों दर्शकों को मोटिवेट करने का मौका दिया। हमारे टाइम में अपने रोल मॉडल से ऐसे फेस टू फेस मिलने का मौका नहीं मिलता था। आज की लड़कियों के पास टैलेंट भी है और एक्सपोजर भी। उनके पास मेरे अलावा भी बिजनेस वुमन फाल्गुनी नायर, गजल अलघ, नमिता थापर जैसी कई रोल मॉडल हैं, जिन्हें देखकर वो हिम्मत जुटा सकती हैं।

पहले बिजनेस वुमन को फंडिंग आसानी से नहीं मिलती थी, लेकिन अब उनके पास कई विकल्प हैं। अगले 10 साल में भारतीय लड़कियां कमाल कर दिखाएंगी, इसका मुझे पूरा यकीन है। मिडिल क्लास फैमिली से आकर यदि मैं बिजनेस वुमन बन सकती हूं तो कोई भी लड़की बन सकती है। पेरेंट्स को अपनी बेटियों को आगे बढ़ने से रोकना नहीं चाहिए। कल को आपकी बेटी कितना आगे बढ़ जाए इसके बारे में आप सोच भी नहीं सकते।

मैं दुनिया बदलना चाहती थी
मेरे माता-पिता मेडिकल साइंटिस्ट हैं इसलिए मेरी परवरिश दिल्ली के एम्स कैंपस में हुई। मेरा जन्म मेरे ननिहाल यानी गुजरात में हुआ। जन्म के बाद दो-तीन साल तक मैं गुजरात में रही, फिर दिल्ली आ गई। मुझे मैथ्स पसंद था, इसलिए मैंने डिसाइड किया कि मुझे इंजीनियर बनना है। मैंने आईआईटी के लिए तैयारी की और मेरा उसमें एडमिशन भी हो गया। 2005 में मैंने आईआईटी चेन्नई से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की। आईआईटी में जाकर मुझे बहुत एक्सपोजर मिला। उस दौरान मैंने कई किताबें पढ़ीं। तब एहसास हुआ कि यदि दुनिया बदलनी है तो मुझे अपना बिजनेस शुरू करना होगा। उससे ही सोसाइटी में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। 17 साल की उम्र में मैंने तय कर लिया था कि नौकरी नहीं, अपना बिजनेस करूंगी। मैं खुशनसीब हूं कि मुझे बहुत छोटी उम्र में ये पता चल गया कि मुझे लाइफ में करना क्या है। कई लोगों को ये क्लियरिटी बहुत देर से मिलती है।

मुझे अपने सफर से प्यार है
आप कितना चल सकते हैं इससे यह तय होता है कि आप कहां पहुंच सकते हैं। डेस्टिनेशन पर पहुंचने से ज्यादा सफर से प्यार होना चाहिए। आईआईटी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने जब मैं चेन्नई जा रही थी, तो फ्लाइट में मेरी प्रोफेसर झुनझुनवाला से मुलाकात हुई। मैं उन्हें अपने फ्यूचर प्लान के बारे में बता रही है। तब उन्होंने बताया कि यदि तुम सच में कोई शानदार काम करना चाहती हो, दुनिया बदलना चाहती हो, तो तुम्हें अपना बिजनेस शुरू करना चाहिए। उनका कहना था कि यदि आप किसी चीज के पीछे अपना पूरा जीवन लगा रहे हो तो आपको क्लियर होना चाहिए कि आप उसी चीज के लिए बने हो। मन में थोड़ा सा भी डाउट नहीं होना चाहिए।

पढ़ाई के साथ बिजनेस प्लान बनाने लगी
आईआईटी की पढ़ाई के दौरान ही मैंने दो-तीन बिजनेस के बारे में सोचना भी शुरू कर दिया। मैं ये समझ चुकी थी कि सिर्फ इंजीनियरिंग करना काफी नहीं, कोई वर्ल्डक्लास कंपनी शुरू करके ही बड़ा बदलाव किया जा सकता है। तब मैं सोचती थी कि वेस्ट (बेकार पड़ी चीजों) से ऐसे प्रोडक्ट्स तैयार किए जाएं जो बहुत फायदेमंद हों और उनकी मैनुफैक्चरिंग से कई लोगों को रोजगार भी मिल सके। सपने तो बहुत बड़े थे, लेकिन शुरुआत कहां से की जाए ये नहीं मालूम था। मन में डर भी था कि एक मिडलक्लास लड़की को इतने बड़े सपने देखने चाहिए या नहीं।

कामयाब बिजनेसमैन के बारे में पढ़ना शुरू किया
मैं इस बात में बहुत यकीन करती हूं कि किसी चीज को पूरी शिद्दत से चाहो तो वो मिलती जरूर है। फ्लाइट में प्रोफेसर झुनझुनवाला से हुई बातचीत का मुझ पर इस कदर असर हुआ कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान ही मैंने रिचर्ड ब्रानसन, स्टीव जॉब्स, हॉवर्ड शुल्ज जैसे दुनिया के कई बड़े बिजनेस टाइकून के बारे में लिखी गई न जाने कितनी किताबें पढ़ डाली। मैं जितना पढ़ती थी, मेरी राह मुझे उतनी क्लियर नजर आती। मुझे ये पता था कि ये राह आसान नहीं है। कुछ बड़ा करना है तो चैलेंजेज भी बड़े ही होंगे, लेकिन मैं वो रिस्क लेने के लिए तैयार थी। इंजीनियरिंग के चार सालों में मैंने खूब किताबें पढ़ीं, इन किताबों ने मुझे मेरे उन सभी सवालों के जवाब दिए जो मैं अपनी जिंदगी से चाहती थी। मुझे समझ आया कि मेरे जीवन का मकसद क्या है। यदि हम क्लियर हैं कि हमें लाइफ में करना क्या है, तो फिर कितने ही बड़े सपने क्यों न हों वो जरूर पूरे होते हैं। छोटे सपनों के पीछे इसलिए भागा जाए कि वहां मुश्किलें कम होंगी, ये मेरी सोच नहीं थी।

स्टारबक्स के फाउंडर हॉवर्ड शुल्ज ने प्रभावित किया
मैंने पहली किताब स्टारबक्स के फाउंडर हॉवर्ड शुल्ज की लाइफ पर पढ़ी। इस किताब ने मेरी सोच बदल दी। इसमें उनके स्टारबक्स को खरीदने से लेकर उसे आगे बढ़ाने की पूरी जर्नी थी। वो जिस तरह बिजनेस को लेकर सोचते थे उसने मुझे बहुत प्रभावित किया। कॉफी को लेकर उनके पैशन ने ही उन्हें इस बिजनेस को आगे बढ़ाने का हौसला दिया। उनकी सोच से मैं बहुत प्रभावित हुई और मैंने फैसला किया कि मैं भी ऐसा ही बिजनेस शुरू करूंगी जहां लोग अपने पैशन को फॉलो करें और खुशी-खुशी काम करें।

पति कौशिक मुखर्जी और बच्चों के साथ विनीता सिंह

‘डे केयर’ में जाना अच्छा लगता था
मैं अपने पेरेंट्स की इकलौती संतान हूं। मम्मी-पापा दोनों वर्किंग थे इसलिए मेरी देखभाल या तो हमारे साथ रहने वाली हेल्प करती थी या मुझे एम्स के ‘डे केयर’ में रखा जाता था। डे केयर में मुझे अपने हमउम्र बच्चों के साथ रहना अच्छा लगता था। मैं हमेशा सोचती कि काश, मेरा कोई भाई या बहन होती। मेरी मां गुजराती हैं और पापा जाट, लेकिन उनकी लव मैरिज नहीं हुई। दोनों की शादी की कहानी बड़ी दिलचस्प है। मम्मी-पापा दोनों पीएचडी थे और दोनों की उम्र तीस से ज्यादा हो चुकी थी। दोनों को सही लाइफ पार्टनर की तलाश थी। फिर जब कॉमन फ्रेंड के जरिए उनकी मुलाकात हुई तो दोनों ने शादी के लिए ‘हां’ कर दी।

पापा कहते, जो भी करो वो दुनिया में सबसे बेस्ट हो
पापा कहते थे, जो भी काम करो वो इतना अच्छा करो कि दुनिया में तुम जैसा कोई न कर सके। उनका कहना था कि तुम यदि इंजीनियरिंग करना चाहती हो तो आईआईटी से ही करो। पापा ने कभी किसी चीज के लिए फोर्स नहीं किया, लेकिन मैं जानती थी कि उनकी मुझसे बहुत उम्मीदें हैं। मेरे पापा ने पांच साल की उम्र से पहले ही अपने पेरेंट्स को खो दिया। उनका बचपन गरीबी में बीता, पढ़ाई स्कॉलरशिप से हुई, इसलिए उनके लिए पढ़ाई ही कामयाबी का पासपोर्ट था।

बचपन की दोस्ती आज भी कायम है
एम्स कैम्पस में ही मेरी बेस्ट फ्रेंड नव्या रहती थी। हम दोनों ‘दिल्ली पब्लिक स्कूल’ में पढ़ते थे। वो मुझसे एक क्लास आगे थी और मेरे लिए बड़ी बहन या यूं कह लें रोल मॉडल जैसी थी। वो पढ़ाई में अच्छी थी और स्कूल में काफी पॉपुलर भी। मैं भी उसके जैसा बनना चाहती थी। उसने भी आईआईटी की तैयारी की, लेकिन उसका सिलेक्शन नहीं हो पाया। वो चाहती थी कि उसका सिलेक्शन नहीं हुआ, तो कम से कम मेरा जरूर हो जाए। वो मुझे पढ़ाई में बहुत हेल्प करती और लापरवाही करने पर डांट भी देती। तब तक मैं क्लियर नहीं थी कि मुझे लाइफ में करना क्या है इसलिए फोकस नहीं कर पाती थी। मैं लकी हूं जो मुझे बचपन में ऐसी फ्रेंड मिली जो हर मायने में मुझसे बेहतर है। मेरे पास बेंच मार्क था कि मुझे उसके जैसा बनना है।

पढ़ाई के लिए पैशन छोड़ा
मैं बचपन से इन्ट्रोवर्ट थी और अभी भी हूं। मैं जल्दी फ्रेंड्स नहीं बना पाती। मेरे थोड़े से फ्रेंड्स हैं जिनके साथ मैं सबकुछ शेयर कर सकती हूं। मुझे दौड़ना, बेडमिंटन खेलना, वर्कआउट करना पसंद है, खाली समय में मैं इन्हीं सब में बीजी रहती हूं। मुझे बचपन से बेडमिंटन खेलना पसंद है। मैं स्कूल मेंपार्टिसिपेट करती थी, लेकिन पढ़ाई की खातिर मुझे अपना पैशन छोड़ना पड़ा। पापा ने कहा, यदि तुम्हें आईआईटी की तैयारी करनी है तो बहुत पढ़ाई करनी होगी। बैडमिंटन खेलना छोड़ने पर मैं बहुत दुखी हुई थी।

सैलरी बड़ी हो तो कोई बिजनेस का रिस्क नहीं लेता
आईआईटी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग करने के बाद मैं आंत्रप्रेन्योरशिप में एमबीए करने आईआईएम अहमदाबाद चली गई। वहां मुझे प्रोफेसर हांडा से आन्त्रप्रेन्योरशिप की बारीकियां सीखने का मौका मिला। प्रोफेसर हांडा आज भी मेरे मेंटर हैं। आईआईएम से पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स को जितनी बड़ी सैलरी मिलती है, उसे छोड़कर कोई बिजनेस का रिस्क नहीं लेना चाहता। प्रोफेसर हांडा पहले ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने आईआईएम में आन्त्रप्रेन्योरशिप को इंट्रोड्यूस किया। उनका मानना है कि आईआईएम के स्टूडेंट्स को भी आंत्रप्रेन्योरशिप का एक्सपोजर मिलना चाहिए।

मैं जॉब नहीं करना चाहती थी
​​​​​​​एमबीए के बाद मुझे इंडस बैंक से जॉब का ऑफर मिला था, लेकिन मैंने जॉब नहीं किया। मैं अपना बिजनेस करना चाहती थी। उस समय बड़े कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद ज्यादातर लोग नौकरी करना पसंद करते थे। बिजनेस के लिए आसानी से लोन नहीं मिलता था। यदि फैमिली बिजनेस न हो तो लोग बिजनेस का जोखिम नहीं उठाते।

हमारे जैसे मिडलक्लास लोग जिनके पेरेंट्स नौकरी करते थे, वो बिजनेस का रिस्क लेने से डरते थे। लेकिन मैं अपनी जिद पर अड़ी रही। हां, पढ़ाई के दौरान मैंने ड्यूश बैंक, एस्कॉर्ट और आईटीसी के लिए इंटर्नशिप की थी। ड्यूश बैंक में बॉस ने मुझे जॉब करने के लिए बहुत फोर्स किया। उन्होंने मुझसे पूछा कि तुम्हें क्या चाहिए। मैंने कहा कि मैं एक महीना लंदन और एक महीना न्यूयॉर्क में जॉब करना चाहती हूं, उन्होंने मुझे दोनों जगहों पर काम करने का मौका दिया।

न्यूयॉर्क में बनाया पहला बिजनेस प्लान
​​​​​​​मैंने एक महीने न्यूयॉर्क के वॉल स्ट्रीट और एक महीने लंदन के सेंट्रल बैंक में काम किया। उस दौरान भी मेरे दिमाग में अपना बिजनेस शुरू करने की धुन सवार थी। गाड़ी से जाने के पैसे नहीं होते थे इसलिए शाम में काम खत्म होने के बाद मैं लॉन्ग वॉक पर निकल जाती। वहां के मार्केट के चक्कर लगाती कि कौन से ब्रांड पॉपुलर हैं, मार्केट में क्या नया हो रहा है। खरीददार क्या चाहते हैं। इंडिया दस साल बाद कहां होगा, ये जानने के लिए विदेशों की सैर जरूरी है। एक बार में सब कुछ पता नहीं चलता, लेकिन काफी क्लियरिटी मिल जाती है।

पहला बिजनेस शुरू होने से पहले बंद हो गया
​​​​​​​उस समय यानी 2007 में मैंने सोचा कि ‘विक्टोरिया सीक्रेट’ जैसा लॉन्जरी ब्रांड इंडिया में लॉन्च करूंगी। उस समय विदेशों में फैंसी लॉन्जरी ब्रांड आ चुके थे, लेकिन इंडिया में महिलाओं के पास ऐसे खूबसूरत विकल्प नहीं थे। तब हमारे देश में काली थैली में छुपाकर लॉन्जरी प्रोडक्ट्स बेचे जाते थे। 32, 34, 36 साइज से ज्यादा इस बारे में महिलाओं को जानकारी नहीं थी।

मैं और मेरे को-फाउंडर देवाशीष और विशाल भूषण, जो मेरे आईआईएम के बैच मेट थे, हमने ब्रांड का नाम ‘Carress’ बुक कर लिया। बिजनेस प्लान भी बना लिया। कितना पैसा चाहिए उसका हिसाब भी लगा लिया, लेकिन उस समय हमारे पास अपना बिजनेस शुरू करने के लिए एक करोड़ रुपए नहीं थे। हम पैसे का अरेंजमेंट करने के लिए 10-15 इन्वेस्टर से मिले, तो वे हम पर हंसने लगे। उन्होंने कहा कि तुम्हारे पास कोई एक्सपीरियंस नहीं है, हम तुम्हें पैसे नहीं दे सकते। पैसे मिले नहीं तो हमारा पहला बिजनेस शुरू होने से पहले ही बंद हो गया। हमने नौकरी छोड़ दी थी और बिजनेस भी शुरू नहीं हो पाया, तो हम काफी निराश हो गए।

दूसरी कंपनी 5 साल में बंद करनी पड़ी
​​​​​​​हम जो भी बिजनेस प्लान बना रहे थे उसमें पैसे की जरूरत थी इसलिए हमने सोचा सर्विस बिजनेस शुरू करते हैं, जिसमें पैसे लगाने की जरूरत न पड़े। हमने एचआर के लोगों को जो भी सर्विसेस चाहिए, जैसे हायरिंग, बैकग्राउंड वेरिफिकेशन, वो सब कुछ प्रोवाइड करने का बिजनेस शुरू किया। बिजनेस के शुरुआती दिनों में काफी संघर्ष करना पड़ा। इस बिजनेस में कमाई बहुत कम थी इसलिए एक-एक कर सारे को-फाउंडर ने कंपनी छोड़ दी।

पांच साल बीत गए, लेकिन बिजनेस में कोई ग्रोथ नहीं नजर आ रही थी। स्टाफ का खर्च निकालना मुश्किल हो रहा था। मुंबई जैसे शहर में अकेले अपने दम पर 10 से 25 हजार में गुजारा करना आसान नहीं था। तब पूरे महीने ये चिंता होती थी कि पहली तारीख को स्टाफ की सैलरी का जुगाड़ कैसे होगा। जेब में पैसे हों या न हों, लेकिन स्टाफ को समय पर सैलरी देनी ही थी।

टाइमपास के लिए मीटिंग रखते थे
​​​​​​​सेल्स के लिए जब मैं कई कंपनियों को पिच करने जाती, तो मुझे देखकर उन्हें लगता कि हम इतनी कम उम्र के लोगों पर कैसे विश्वास कर सकते हैं, इन्हें बिजनेस का क्या अनुभव है। क्लाइंट का विश्वास जीतने के लिए कई बार मैं बालों को हल्का सफेद करके भी जाती, ताकि मेरी मैच्योरिटी देखकर बिजनेस मिल सके। उस समय तक यंग वुमन के लिए सेल्स और मार्केटिंग का काम मुश्किल था। कई लोग फीमेल है तो सिर्फ टाइमपास के लिए मीटिंग रख लेते, कई लोगों के साथ सेफ महसूस नहीं होता था।

उस वक्त बुरी तरह टूट चुकी थी
​​​​​​​हम ये समझ चुके थे कि इस बिजनेस में कोई फ्यूचर नहीं है, लेकिन अपने बिजनेस को बंद करने का फैसला इतना आसान नहीं होता। उस वक्त मैं बुरी तरह टूट गई थी। रिचर्ड ब्रानसन, स्टीव जॉब्स, हॉवर्ड शुल्ज की जिन किताबों को पढ़कर मैंने बिजनेस करने का सपना देखा था, मैं उसे टूटते हुए देख रही थी। मन में ये सवाल उठने लगे कि क्या मैं इनके जैसे नहीं बन सकती? क्या मैं काबिल नहीं हूं? क्या मैंने अपने लिए गलत सपना देखा? क्या मैं बिजनेस के लिए नहीं बनी हूं? पेरेंट्स को कैसे फेस करूंगी? मैं आसानी से बैंकर बन सकती थी, क्या इतने सालों की मेहनत बेकार हो गई?

उस समय इंडिया में महिलाओं के लिए ‘वुमन रोल मॉडल’ बहुत कम थीं। किरण मजूमदार जैसे एकाध नाम ही कामयाबी के शिखर पर थे। मन में ये ख्याल भी आते कि क्या हमारा देश अभी महिला बिजनेस वुमन को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है? लगने लगा था कि या तो मैं बिजनेस के लिए फिट नहीं हूं या फिर वुमन आन्त्रप्रेन्योरशिप के लिए इंडियन मार्केट में अभी जगह नहीं है।

मैं हार मानने को तैयार नहीं थी
​​​​​​​पेरेंट्स के बताए रास्ते पर चलकर गलती होने पर उन्हें जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, लेकिन अपने फैसले के लिए किसे दोषी मानती? आप जब सबसे लड़कर कोई रास्ता चुनते हैं और कामयाब नहीं हो पाते, तो आपका कॉन्फिडेंस बुरी तरह टूट जाता है, मेरे साथ भी यही हुआ। लेकिन इतना सब होने के बाद भी मन ये मानने को तैयार नहीं था कि हार मान लेनी चाहिए। मैं नौकरी करने को तैयार नहीं थी। मुझे अब भी उम्मीद थी कि कुछ और ट्राई किया जा सकता है।

रिसर्च से मिला कॉस्मेटिक ब्रांड का आइडिया
मैं और कौशिक मुखर्जी आईआईएम अहमदाबाद से एक साथ थे। कौशिक ने कदम-कदम पर मेरा साथ दिया। 2011 में हमने शादी कर ली। 2012 में हमें अपना बिजनेस बंद करना पड़ा। 2012 में ही हमने एक ई-कॉमर्स कंपनी शुरू की। उस कंपनी को चलाते हुए ही हमें ‘शुगर कॉस्मेटिक्स’ का आइडिया आया। ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के जरिए हम लाखों महिलाओं की पसंद-नापसंद, उनकी जरूरतों को समझ रहे थे। हम महिलाओं को सबक्रिप्शन फॉर्म देते और उन्हें अपना फीडबैक देने के लिए कहते। इस तरह हमारे पास लाखों महिलाओं का फीडबैक आ चुका था।

महिलाओं की जरूरतों को समझा
​​​​​​​ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के लिए रिसर्च करने के दौरान हमारे पास कई महिलाओं के फीडबैक आते। ज्यादातर महिलाओं की एक जैसी फरमाइश रहती, जैसे- मैं वर्किंग वुमन हूं या कॉलेज गर्ल हूं, मुझे ऐसी लिपस्टिक चाहिए जो लंबे समय तक होंठों पर टिकी रहे, मेरे डार्क कॉम्लेक्शन पर अच्छी लगे और भारत के मौसम के हिसाब से भी ठीक हो।

हम महिलाओं की डिमांड ब्रांड्स तक पहुंचाते और पूछते कि आप ऐसे प्रोडक्ट्स क्यों नहीं बनाते। उनसे हमें संतुष्टि वाले जवाब न मिलते। हम समझ चुके थे कि ये आज की इंडियन वुमन की जरूरतों को नहीं समझ पा रहे हैं। वो अब भी ऐसे मेकअप प्रोडक्ट्स बना रहे थे जिन्हें महिलाएं पार्टी, शादी या त्योहारों पर लगा सकें। महिलाओं के डेली मेकअप की जरूरतें पूरी नहीं हो रही थी।

4 लिपस्टिक शेड्स से शुरू किया ‘शुगर कॉस्मेटिक्स’ ब्रांड
इस बार हम नया बिजनेस शुरू करने के लिए काफी डरे हुए थे, फिर भी हिम्मत जुटाकर मैंने और कौशिक ने मिलकर 2015 में अपना नया कॉस्मेटिक ब्रांड ‘शुगर’ लॉन्च किया। खास बात ये है कि हमने सिर्फ 4 लिपस्टिक शेड से इस ब्रांड की शुरुआत की। लिपस्टिक के ये 4 शेड आज की ग्लोबल इंडियन वुमन की पसंद को ध्यान में रखकर बनाए गए थे। इन्हें बनाने में हमने अपनी पूरी रिसर्च लगा दी। हमारी मेहनत रंग लाई। ब्राइट पिंक, न्यूड, बेरी और रेड- ये चारों लिपस्टिक शेड्स महिलाओं को इतने पसंद आए कि बहुत कम समय में ‘शुगर’ कॉस्मेटिक ब्रांड पॉपुलर हो गया। इस बार हमें एक करोड़ का लोन भी मिला और कामयाबी भी। बहुत जल्द हमने लोन चुका लिया और कंपनी की ग्रोथ भी लगातार बढ़ने लगी।

विनीता सिंह के साथ 2500 महिलाएं काम कर रही हैं

देश की नंबर 1 कॉस्मेटिक कंपनी का सपना
​​​​​​​यदि आपको क्लाइंट की जरूरतों के बारे में अच्छी जानकारी है, आपकी रिसर्च सही है, तो आपका बिजनेस हिट होगा ही। इस समय हमारे साथ ढाई हजार महिलाएं काम रही हैं और हमारा इस साल का बिजनेस टर्नओवर का टारगेट 700 करोड़ रुपए है। बहुत जल्द मैं ‘शुगर’ को इंडिया की नंबर 1 कॉस्मेटिक कंपनी के रूप में देखना चाहती हूं।