यह विषय आपको जरूर चौकाने वाला है। अपने ही दिमाग को नियंत्रण में कैसे रखे यह बात अक्शर हजम नहीं होती। हमने दुसरो के दिमागको कैसे नियंत्रण करे यह विषय लिया था और तब किसी ने यह भी पूछा था कि खुद का कैसे नियंत्रित करे। बात सही है। दुसरो के दिमाग को अगर नियंत्रित करना हो तो आसान कार्य है परंतु जब खुद का करना हो तो बहुत बहुत मुश्किल हो जाता है। तो आज हम उसी के बारे में बात करने वाले है। खुद का दिमाग कैसे कार्य करता है यह बात तो हम सब नहीं जानते पर आज हम यही विषय के ज़रिये बात करेंगे कि कैसे अपना दिमाग काम करता है और कैसे उसको नियंत्रित किया जा सकता है। तो आईये आज हम दिमाग की गहराई में झांके।

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यहाँ पर दिए गए सारे विचार मेरे खुद के है। किसी भी जीवित या मृतक से कोई लेना देना नहीं है। अगर होता भी है तो महज एक इत्तेफ़ाक़ के अलावा कुछ नहीं। और जो लोग मेरी किसी बात से सहमत ना हो वह अपने विचार किसी उदहारण के साथ समजाये। अन्यथा शांत बने रहे। में यहाँ पर अपने विचार किसी पर थोप नहीं रहा अपितु अपना अनुभवी ज्ञानको बाँट रहा हूँ इसी उम्मीद से कि किसी को काम आ जाये। तो चलो शुरू करते है अपना सफ़र। इस लेख के लिए दिमाग की जो माहिती दी गयी है वह विकिपीडिया से ली गयी है।

स्वामी विवेकानंद जी ने अपनी किताब राजयोग में लिखा है कि इंसान का दिमाग कैसा है। उन्होंने बहुत ही सरल भाषा में बताया है कि इंसान का दिमाग एक ऐसा बन्दर की तरह है जिसने बहुत दारु पिया है, ऊपर से भांग का नशा किया है। साथ में हज़ारों बिच्छु ने डंख मारा है और ज़हरीले असंख्य सांपो ने भी डंख मार है और ऊपर से जैसे आग बरस रही हो ऐसा भय है। स्वामी जी की बात एकदम सही है। इंसान का दिमाग सच में ही ऐसा है। कोई ठिकाना नहीं। अभी इधर तो अगले पल उधर। स्वामी जीने सही डेफिनिशन दी है मानव दिमाग। के हाल की। ओअर सवाल यह उठता है करे कैसे उसको नियंत्रित ऐसे बंदर को जो आउट ऑफ़ कंट्रोल हो! पर उसके पहले हमे अपना दिमाग है क्या और कैसे कार्य करता है यह जानना बहुत ही जरुरी है अन्यथा हम समज नहीं पाएंगे की कैसे उसको नियंत्रित करे। कई लोग यह समजते है कि दिमाग और मस्तिस्क एक ही है पर में समजाना चाहता हूँ कि दोनों एक नहीं है। मन दिमाग से जुड़ा हुआ है जिसको अंग्रेजी में माइंड कहते है और मस्तिस्क को ब्रेन कहते है। मन दिमाग से जुड़ा हुआ है और ब्रेन शरीर से। तो इतना फर्क पहचान ले पहले।

तो पहले हम यह जान लेते है की अपने मस्तिक की रचना कैसी है।

मस्तिष्क की रचना

मस्तिष्क में ऊपर का बड़ा भाग प्रमस्तिष्क (hemispheres) कपाल में स्थित हैं। इनके पीछे के भाग के नचे की ओर अनुमस्तिष्क (cerebellum) के दो छोटे छोटे गोलार्घ जुड़े हुए दिखाई देते हैं। इसके आगे की ओर वह भाग है, जिसको मध्यमस्तिष्क या मध्यमस्तुर्लुग (midbrain or mesencephalon) कहते हैं। इससे नीचे को जाता हुआ मेरूशीर्ष, या मेदुला औब्लांगेटा (medulla oblongata), कहते है।

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प्रमस्तिष्क और अनुमस्तिष्क झिल्लियों से ढके हुए हैं, जिनको तानिकाएँ कहते हैं। ये तीन हैं: दृढ़ तानिका, जालि तानिका और मृदु तानिका। सबसे बाहरवाली दृढ़ तानिका है। इसमें वे बड़ी बड़ी शिराएँ रहती हैं, जिनके द्वारा रक्त लौटता है। कलापास्थि के भग्न होने के कारण, या चोट से क्षति हो जाने पर, उसमें स्थित शिराओं से रक्त निकलकर मस्तिष्क मे जमा हो जाता है, जिसके दबाव से मस्ष्तिष्क की कोशिकाएँ बेकाम हो जाती हैं तथा अंगों का पक्षाघात (paralysis) हो जाता है। इस तानिका से एक फलक निकलकर दोनों गोलार्धो के बीच में भी जाता है। ये फलक जहाँ तहाँ दो स्तरों में विभक्त होकर उन चौड़ी नलिकाओं का निर्माण करते हैं, जिनमें से हाकर लौटनेवाला रक्त तथा कुछ प्रमस्तिष्क मेरूद्रव भी लौटते है।

प्रमस्तिष्क

इसके दोनों गोलार्घो का अन्य भागों की अपेक्षा बहुत बड़ा होना मनुष्य के मस्तिष्क की विशेषता है। दोनों गोलार्ध कपाल में दाहिनी और बाईं ओर सामने ललाट से लेकर पीछे कपाल के अंत तक फैले हुए हैं। अन्य भाग इनसे छिपे हुए हैं। गोलार्धो के बीच में एक गहरी खाई है, जिसके तल में एक चौड़ी फीते के समान महासंयोजक (Corpus Callosum) नामक रचना से दोनों गोलार्ध जुरे हुए हैं। गोलार्धो का रंग ऊपर से घूसर दिखाई देता है।

गोलार्धो के बाह्य पृष्ठ में कितने ही गहरे विदर बने हुए हैं, जहाँ मस्तिष्क के बाह्य पृष्ठ की वस्तु उसके भीतर घुस जाती है। ऐसा प्रतीत होता है, मानो पृष्ठ पर किसी वस्तु की तह को फैलाकर समेट दिया गया है, जिससे उसमें सिलवटें पड़ गई हैं। इस कारण मस्तिष्क के पृष्ठ पर अनेक बड़ी छोटी खाइयाँ बन जाती हैं, जो परिखा (Sulcus) कहलाती हैं। परिखाओं के बीच धूसर मस्तिष्क पृष्ठ के मुड़े हुए चक्रांशवतद् भाग कर्णक (Gyrus) कहलाते हैं, क्योंकि वे कर्णशुष्कली के समान मुडे हुए से हैं। बडी और गहरी खाइयॉ विदर (Fissure) कहलाती है और मस्तिष्क के विशिष्ट क्षेत्रों को पृथक करती है। मस्तिष्क के सामने, पार्श्व तथा पीछे के बड़े-बड़े भाग को उनकी स्थिति के अनुसार खांड (Lobes) तथा खांडिका (Lobules) कहा गया है। गोलार्ध के सामने का खंड ललाटखंड (frontal lobe) है, जो ललाटास्थि से ढँका रहता है। इसी प्रकार पार्श्विका (Parietal) खंड तथा पश्चकपाल (Occipital) खंड तथा शंख खंड (temporal) हैं। इन सब पर परिशखाएँ और कर्णक बने हुए हैं। कई विशेष विदर भी हैं। चित्र 2. और 3 में इनके नाम और स्थान दिखाए गए हैं। कुछ विशिष्ट विदरों तथा परिखाओं की विवेचना यहाँ की जाती है। पार्शिवक खंड पर मध्यपरिखा (central sulcus), जो रोलैडो का विदर (Fissure of Rolando) भी कहलाती है, ऊपर से नीचे और आगे को जाती है। इसके आगे की ओर प्रमस्तिष्क का संचालन भाग है, जिसकी क्रिया से पेशियाँ संकुचित होती है। यदि वहाँ किसी स्थान पर विद्युतदुतेजना दी जाती है तो जिन पेशियों को वहाँ की कोशिकाओं से सूत्र जाते हैं उनका संकोच होने लगता है। यदि किसी अर्बुद, शोथ दाब आदि से कोशिकाएँ नष्ट या अकर्मणय हो जाती हैं, तो पेशियाँ संकोच नहीं, करतीं। उनमें पक्षघात हो जाता है। दस विदर के पीछे का भाग आवेग क्षेत्र है, जहाँ भिन्न भिन्न स्थानों की त्वचा से आवेग पहुँचा करते हैं। पीछे की ओर पश्चकपाल खंड में दृष्टिक्षेत्र, शूक विदर (calcarine fissure) दृष्टि का संबंध इसी क्षेत्र से है। दृष्टितंत्रिका तथा पथ द्वारा गए हुए आवेग यहाँ पहुँचकर दृष्ट वस्तुओं के (impressions) प्रभाव उत्पन्न करते हैं।

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नीचे की ओर शंखखंड में विल्वियव के विदर के नीचे का भाग तथा प्रथम शंखकर्णक श्रवण के आवेगों को ग्रहण करते हैं। यहाँ श्रवण के चिह्रों की उत्पत्ति होती है। यहाँ की कोशिकाएँ शब्द के रूप को समझती हैं। शंखखंड के भीतरी पृष्ठ पर हिप्पोकैंपी कर्णक (Hippocampal gyrus) है, जहाँ गंध का ज्ञान होता है। स्वाद का क्षेत्र भी इससे संबंधित है। गंध और स्वाद के भाग और शक्तियाँ कुछ जंतुओं में मनुष्य की अपेक्षा बहुत विकसित हैं। यहीं पर रोलैंडो के विदर के पीछे स्पर्शज्ञान प्राप्त करनेवाला बहुत सा भाग है।

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ललाटखंड अन्य सब जंतुओं की अपेक्षा मनुष्य में बढ़ा हुआ है, जिसके अग्रिम भाग का विशेष विकास हुआ है। यह भाग समस्त प्रेरक और आवेगकेंद्रों से संयोजकसूत्रों (association fibres) द्वारा संबद्ध है, विशेषकर संचालक क्षेत्र के समीप स्थित उन केंद्रों से, जिनका नेत्र की गति से संबंध है। इसलिये यह माना जाता है कि यह भाग सूक्ष्म कौशलयुक्त क्रियाओं का नियमन करता है, जो नेत्र में पहुँचे हुए आवेगों पर निर्भर करती हैं और जिनमें स्मृति तथा अनुभाव की आवश्यकता होती है। मनुष्य के बोलने, लिखने, हाथ की अँगुलियों से कला की वस्तुएँ तैयार करने आदि में जो सूक्ष्म क्रियाएँ होती हैं, उनका नियंत्रण यहीं से होता है।

प्रमस्तिष्क उच्च भावनाओं का स्थान माना जाता है। मनुष्य के जो गुण उसे पशु से पृथक् कते हैं, उन सबका स्थान प्रमस्तिष्क है।

पार्श्व निलय (Lateral Ventricles)

यदि गोलार्धो को अनुप्रस्थ दिशा में काटा जाय तो उसके भीतर खाली स्थान या गुहा मिलेगी। दोनों गोलार्धो में यह गुहा है, जिसको निलय कहा जाता है। ये गोलार्धो के अग्रिम भाग ललाटखंड से पीछे पश्चखंड तक विस्तृत हैं। इनके भीतर मस्तिष्क पर एक अति सूक्ष्म कला आच्छादित है, जो अंतरीय कहलाती है। मृदुतानिका की जालिका दोनों निलयों में स्थित है। इन गुहाओं में प्रमस्तिष्क मेरूद्रव भरा रहता है, जो एक सूक्ष्म छिद्र क्षरा, जिसे मुनरो का छिद्र (Foramen of Munro) कहते हैं, दृष्टिचेतकां (optic thalamii) के बीच में स्थित तृतीय निलय में जाता रहता है।

प्रमस्तिष्क प्रांतस्था (Cerebral Cortex)

प्रमस्तिष्क के पृष्ठ पर जो धूसर रंग के पदार्थ का मोटा स्तर चढ़ा हुआ है, वह प्रांतस्था कहलाता है। इसके नीचे श्वेत रंग का अंतस्थ (medulla) भाग है। उसमें भी जहाँ तहाँ धूसर रंग के द्वीप और कई छोटी छोटी द्वीपिकाएँ हैं। इनको केंद्रक (nucleus) कहा जाता है।

प्रांतस्था स्तर विशेषकर तंत्रिका कोशिकाओं का बना हुआ है, यद्यपि उसमें कोशिकाओं से निकले हुए सूत्र और न्यूरोम्लिया नामक संयोजक ऊतक भी रहते हैं, किंतु इस स्तर में कोशिकाओं की ही प्रधानता होती है।

स्वयं प्रांतस्था में कई स्तर हाते हैं। सूत्रों के स्तर में दो प्रकार के सूत्र हैं: एक वे जो भिन्न भिन्न केंद्रों को आपस में जोड़े हुए हैं (इनमें से बहुत से सूत्र नीचे मेरूशीर्ष या मे डिग्री के केंद्रों तथा अनुमस्तिष्क से आते हैं, कुछ मस्तिष्क ही में स्थित केंद्रों से संबंध स्थापित करते हैं); दूरे वे सत्र हैं जे वहाँ की कोशिकाओं से निकलकर नीचे अंत:-संपुट में चे जाते हैं और वहाँ पिरामिडीय पथ (pyramidial tract) में एकत्र हाकर मे डिग्री में पहुँचते हैं।

मनुष्य तथा उच्च श्रेणी के पशुओं, जैसे एप, गारिल्ला आदि में, प्रांतस्था में विशिष्ट स्तरों का बनना विकास की उन्नत सीमा का द्योतक है। निम्न श्रेणी के जंतुओं में न प्रांतस्था का स्तरीभवन ही मिलता है और न प्रमस्तिष्क का इतना विकास होता है।

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अंततस्था

यह विशेषतया प्रांतस्था की काशिकाओं से निकले हुए अपवाही तथा उनमें जनेवाले अभिवाही सूत्रों का बना हुआ है। इन सूत्रपुंजों के बीच काशिकाओं के समूह जहाँ तहाँ स्थित हैं और उनका रंग धूसर है। अंंतस्था श्वेत रंग का है।

अनुमस्तिष्क

मस्तिष्क के पिछले भाग के नीचे अनुमस्तिष्क स्थित है। उसके सामने की ओर मघ्यमस्तिष्क है, जिसके तीन स्तंभों द्वारा वह मस्तिष्क से जुड़ा हुआ है। बाह्य पृष्ठ धूसर पदार्थ से आच्छादित होने के कारण इसका रंग भी धूसर है और प्रमस्तिष्क की ही भाँति उसके भीतर श्वेत पदार्थ है। इसमें भी दो गोलार्ध हैं, जिनका काटने से बीच में श्वेत रंग की, वृक्ष की शाखाओं की सी रचना दिखाई देती है। अनुमस्तिष्क में विदरों के गहरे होने से वह पत्रकों (lamina) में विभक्त हे गया है। ऐसी रचना प्रशाखारूपिता (Arber vitae) कहलाती है।

अनुमस्तिष्क का संबंध विशेषकर अंत:कर्ण से और पेशियों तथा संधियों से है। अन्य अंगों से संवेदनाएँ यहाँ आती रहती हैं। उन सबका सामंजस्य करना इस अंग का काम है, जिससे अंगों की क्रियाएँ सम रूप से होती रहें। शरीर को ठीक बनाए रखना इस अंग का विशेष कर्म है। जिन सूत्रों द्वारा ये संवेग अनुमतिष्क की अंतस्था में पहुँचते हैं, वे प्रांतस्था से गोलार्ध के भीतर स्थित दंतुर केंद्रक (dentate nucleus) में पहुँचते हैं, जो घूसर पदार्थ, अर्थात् कोशिकाओं, का एक बड़ा पुंज है। वहाँ से नए सूत्र मध्यमस्तिष्क में दूसरी ओर स्थित लाल केंद्रक (red nucleus) में पहुँचते हैं। वहाँ से संवेग प्रमस्तिष्क में पहुँच जाते हैं।

मध्यमस्तिष्क (Mid-brain)

अनुमस्तिष्क के सामने का ऊपर का भाग मध्यमस्तिक और नीचे का भाग मेरूशीर्ष (Medulla oblongata) है। अनुमस्तिष्क और प्रमस्तिष्क का संबंध मध्यमस्तिष्क द्वारा स्थापित होता है। मघ्यमस्तिष्क में होते हुए सूत्र प्रमस्तिष्क में उसी ओर, या मध्यरेखा को पार करके दूसरी ओर को, चले जाते हैं।

मध्यमस्तिष्क के बीच में सिल्वियस की अणुनलिका है, जो तृतिय निलय से चतुर्थ निलय में प्रमस्तिष्क मेरूद्रव को पहुँचाती है। इसके ऊपर का भाग दो समकोण परिखाओं द्वारा चार उत्सेधों में विभक्त है, जो चतुष्टय काय या पिंड (Corpora quadrigemina) कहा जाता है। ऊपरी दो उत्सेधों में दृष्टितंत्रिका द्वारा नेत्र के रेटिना पटल से सूत्र पहुँचते हैं। इन उत्सेधों से नेत्र के तारे में होनेवाली उन प्रतिवर्त क्रियाओं का नियमन होता है, जिनसे तारा संकुचित या विस्तृत होता है। नीचे के उत्सेधों में अंत:कर्ण के काल्कीय भाग से सूत्र आते हैं और उनके द्वारा आए हुए संवेगों को यहाँ से नए सूत्र प्रमस्तिष्क के शंखखंड के प्रतिस्था में पहुँचाते हैं।

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मेरूरज्जु से अन्य सूत्र भी मध्यमस्तिष्क में आते हैं। पीड़ा, शीत, उष्णता आदि के यहाँ आकर, कई पुंजो में एकत्र होकर, मेरूशीर्ष द्वारा उसी ओर को, या दूसरी ओर पार होकर, पौंस और मध्यमस्तिष्क द्वारा थैलेमस में पहुँचते हैं और मस्तिष्क में अपने निर्दिष्ट केंद्र को, या प्रांतस्या में, चले जाते हैं।

अणुनलिका के सामने यह नीचे के भाग द्वारा भी प्रेरक तथा संवेदनसूत्र अनेक भागों को जाते हैं। संयोजनसूत्र भी यहाँ पाए जाते हैं।

पौंस वारोलिआइ (Pons varolii)

यह भाग मेरूशीर्ष और मध्यमस्तिष्क के बीच में स्थित है और दोनों अनुमस्तिष्क के गोलार्धों को मिलाए रहता है। चित्र में यह गोल उरूत्सेध के रूप में सामने की ओर निकला हुआ दिखाई देता है। मस्तिष्क की पीरक्षा करने पर उसपर अनुप्रस्थ दिशा में जाते हुए सूत्र छाए हुए दिखाई देते हैं। ये सूत्र अंत:संपुट और मध्यमस्तिष्क से पौंस में होते हुए मेरूशीर्ष में चले जाते हैं। सब सूत्र इतने उत्तल नहीं हैं। कुछ गहरे सूत्र ऊ पर से आनेवाले पिरामिड पथ के सूत्रों के नीचे रहते हैं। पिरामिड पथों के सूत्र विशेष महत्व के हैं, जो पौंस में होकर जाते हैं। अन्य कई सूत्रपुंज भी पौंस में होकर जाते हैं, जो अनुदैर्ध्य, मध्यम और पार्श्व पंज कहलाते हैं। इस भाग में पाँचवीं, छठी, सातवीं और आठवीं तंत्रिकाओं के केंद्रक स्थित हैं।

मेरूशीर्ष (Medulla oblongata)

देखने से यह मे डिग्री का भाग ही दिखाई देता है, जो ऊपर जाकर मध्यमस्तिष्क और पौंस में मिल जाता है; किंतु इसकी रचना मेरूरज्जु से भिन्न है। इसके पीछे की ओर अनुमस्तिष्क है। यहाँ इसका आकार मेरुरज्जु से दुगना हो जाता है। इसके चौड़े और चपटे पृष्ठभाग पर एक चौकोर आकार का खात बन गया है, जिसपर एक झिल्ली छाई रहती है। यह चतुर्थ निलय (Fourth ventricle) कहलाता है, जिसमें सिलवियस की नलिका द्वारा प्रमस्तिष्क मेरूद्रव आता रहता है। इसके पीछे की ओर अनुमस्तिष्क है।

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मेरूशीर्षक अत्यंत महत्व का अंग है। हृत्संचालक केंद्र, श्वासकेंद्र तथा रक्तसंचालक केन्द्र चतुर्थ निलय में निचले भाग में स्थित हैं, जो इन क्रियाओं का नियंत्रण करते हैं। इसी भाग में आठवीं, नवीं, दसवीं, ग्यारहवीं और बारहवीं मस्तिष्कीय तंत्रिकाओं के केन्द्र भी स्थित हैं। यह भाग प्रमस्तिष्क, अनुमस्तिष्क तथा मध्यमस्तिष्क से अनेक सूत्रों द्वारा जुड़ा हुआ है और अनेक सूत्र मेरूरज्जु में जाते और वहाँ से आते हैं। ये सूत्र पुंजों में समूहित हैं। ये विशेष सूत्रपुंज हैं:

  1. पिरामिड पथ (Pyramidal tract)
  2. मध्यम अनुदैर्ध्यपुंज (Median Longitudinal bundles)
  3. मध्यम पुंजिका (Median filler)

1. पिरामिड पथ में केवल प्रेरक (motor) सूत्र हैं, जो प्रमस्तिष्क के प्रांतस्था की प्रेरक कोशिकाओं से निकलकर अंत:संपुट में होते हुए, मध्यमस्तिष्क और पौंस से निकलकर, मेरूशीर्षक में आ जाते हैं और दो पुंजों में एकत्रित होकर रज्जु की मध्य परिखा के सामने और पीछे स्थित होकर नीचे को चले जाते हैं। नीचे पहुँचकर कुछ सूत्र दूसरी ओर पार हो जाते हैं और कुछ उसी ओर नीचे जाकर तब दूसरी ओर पार होते हैं, किंतु अंत में सस्त सूत्र दूसरी ओर चले जाते हैं। जहाँ वे पेशियों आदि में वितरित होते हैं। इसी कारण मस्तिष्क पर एक ओर चोट लगने से, या वहाँ रक्तस्राव होने से, उस ओर की कोशिकाआं के अकर्मणय हो जाने पर शरीर के दूसरी ओर की पेशियों का संस्तंभ होता है।

2. मध्यम अनुदैर्ध्य पुंजों के सूत्र मघ्यमस्तिष्क और पौंस में होते हुए मेरूशीर्ष में आते हैं और कई तंत्रिकाआं के केंद्र को उस ओर तथा दूसरी ओर भी जोड़ते हैं, जिससे दोनों ओर की तंत्रिकाओं की क्रियाओं का नियमन सभव होता है।

3. ‘मध्यम पुंजिका में केवल संवेदन सूत्र हैं। चह पुंजिका उपर्युक्त दोनों पुंजों के बीच में स्थित है। ये सूत्र मेरुरज्जु से आकर, पिरामिड सूत्रों के आरपार होने से ऊपर जाकर, दूसरी ओर के दाहिने सूत्र बाईं ओर और वाम दिशा के सूत्र दाहिनी ओर को प्रमस्तिष्क में स्थित केंद्रो में चले जाते हैं।

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मन मस्तिष्क की उस क्षमता को कहते हैं जो मनुष्य को चिंतन शक्ति, स्मरण-शक्ति, निर्णय शक्ति, बुद्धि, भाव, इंद्रियाग्राह्यता, एकाग्रता, व्यवहार, परिज्ञान (अंतर्दृष्टि), इत्यादि में सक्षम बनाती है। सामान्य भाषा में मन शरीर का वह हिस्सा या प्रक्रिया है जो किसी ज्ञातव्य को ग्रहण करने, सोचने और समझने का कार्य करता है। यह मस्तिष्क का एक प्रकार्य है।

मन और इसके कार्य करने के विविध पहलुओं का मनोविज्ञान नामक ज्ञान की शाखा द्वारा अध्ययन किया जाता है। मानसिक स्वास्थ्य और मनोरोग किसी व्यक्ति के मन के सही ढंग से कार्य करने का विश्लेषण करते हैं। मनोविश्लेषण नामक शाखा मन के अन्दर छुपी उन जटिलताओं का उद्घाटन करने की विधा है जो मनोरोग अथवा मानसिक स्वास्थ्य में व्यवधान का कारण बनते हैं। वहीं मनोरोग चिकित्सा मानसिक स्वास्थ्य को पुनर्स्थापित करने की विधा है।

सामाजिक मनोविज्ञान किसी व्यक्ति द्वारा विभिन्न सामाजिक परिस्थितयों में उसके मानसिक व्यवहार का अध्ययन करती है। शिक्षा मनोविज्ञान उन सारे पहलुओं का अध्ययन करता है जो किसी व्यक्ति की शिक्षा में उसके मानसिक प्रकार्यों के द्वारा प्रभावित होते हैं।

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फ्रायड नामक मनोवैज्ञानिक ने बनावट के अनुसार मन को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया था :

  1. सचेतन: यह मन का लगभग दसवां हिस्सा होता है, जिसमें स्वयं तथा वातावरण के बारे में जानकारी (चेतना) रहती है। दैनिक कार्यों में व्यक्ति मन के इसी भाग को व्यवहार में लाता है।
  2. अचेतन: यह मन का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा है, जिसके कार्य के बारे में व्यक्ति को जानकारी नहीं रहती। यह मन की स्वस्थ एवं अस्वस्थ क्रियाओं पर प्रभाव डालता है। इसका बोध व्यक्ति को आने वाले सपनों से हो सकता है। इसमें व्यक्ति की मूल-प्रवृत्ति से जुड़ी इच्छाएं जैसे कि भूख, प्यास, यौन इच्छाएं दबी रहती हैं। मनुष्य मन के इस भाग का सचेतन इस्तेमाल नहीं कर सकता। यदि इस भाग में दबी इच्छाएं नियंत्रण-शक्ति से बचकर प्रकट हो जाएं तो कई लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं जो बाद में किसी मनोरोग का रूप ले लेते हैं।
  3. अर्धचेतन या पूर्वचेतन: यह मन के सचेतन तथा अचेतन के बीच का हिस्सा है, जिसे मनुष्य चाहने पर इस्तेमाल कर सकता है, जैसे स्मरण-शक्ति का वह हिस्सा जिसे व्यक्ति प्रयास करके किसी घटना को याद करने में प्रयोग कर सकता है।

फ्रायड ने कार्य के अनुसार भी मन को तीन मुख्य भागों में वर्गीकृत किया है।

इड (मूल-प्रवृत्ति): यह मन का वह भाग है, जिसमें मूल-प्रवृत्ति की इच्छाएं (जैसे कि उत्तरजीवित यौनता, आक्रामकता, भोजन आदि संबंधी इच्छाएं) रहती हैं, जो जल्दी ही संतुष्टि चाहती हैं तथा खुशी-गम के सिद्धांत पर आधारित होती हैं। ये इच्छाएं अतार्किक तथा अमौखिक होती हैं और चेतना में प्रवेश नहीं करतीं।

  1. ईगो (अहम्): यह मन का सचेतन भाग है जो मूल-प्रवृत्ति की इच्छाओं को वास्तविकता के अनुसार नियंत्रित करता है। इस पर सुपर-ईगो (परम अहम् या विवेक) का प्रभाव पड़ता है। इसका आधा भाग सचेतन तथा अचेतन रहता है। इसका प्रमुख कार्य मनुष्य को तनाव या चिंता से बचाना है। फ्रायड की मनोवैज्ञानिक पुत्री एना फ्रायड के अनुसार यह भाग डेढ़ वर्ष की आयु में उत्पन्न हो जाता है जिसका प्रमाण यह है कि इस आयु के बाद बच्चा अपने अंगों को पहचानने लगता है तथा उसमें अहम् भाव (स्वार्थीपन) उत्पन्न हो जाता है।
  2. सुपर-ईगो (विवेक; परम अहम्): सामाजिक, नैतिक जरूरतों के अनुसार उत्पन्न होता है तथा अनुभव का हिस्सा बन जाता है। इसके अचेतन भाग को अहम्-आदर्श (ईगो-आइडियल) तथा सचेतन भाग को विवेक कहते हैं।
  3. ईगो (अहम्) का मुख्य कार्य वास्तविकता, बुद्धि, चेतना, तर्क-शक्ति, स्मरण-शक्ति, निर्णय-शक्ति, इच्छा-शक्ति, अनुकूलन, समाकलन, भेद करने की प्रवृत्ति को विकसित करना है।

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मस्तिष्क जन्तुओं के केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का नियंत्रण केन्द्र है। यह उनके आचरणों का नियमन एंव नियंत्रण करता है। स्तनधारी प्राणियों में मस्तिष्क सिर में स्थित होता है तथा खोपड़ी द्वारा सुरक्षित रहता है। यह मुख्य ज्ञानेन्द्रियों, आँख, नाक, जीभ और कान से जुड़ा हुआ, उनके करीब ही स्थित होता है। मस्तिष्क सभी रीढ़धारी प्राणियों में होता है परंतु अमेरूदण्डी प्राणियों में यह केन्द्रीय मस्तिष्क या स्वतंत्र गैंगलिया के रूप में होता है। कुछ जीवों जैसे निडारिया एंव तारा मछली में यह केन्द्रीभूत न होकर शरीर में यत्र तत्र फैला रहता है, जबकि कुछ प्राणियों जैसे स्पंज में तो मस्तिष्क होता ही नही है। उच्च श्रेणी के प्राणियों जैसे मानव में मस्तिष्क अत्यंत जटिल होते हैं। मानव मस्तिष्क में लगभग १ अरब (१,००,००,००,०००) तंत्रिका कोशिकाएं होती है, जिनमें से प्रत्येक अन्य तंत्रिका कोशिकाओं से १० हजार (१०,०००) से भी अधिक संयोग स्थापित करती हैं। मस्तिष्क सबसे जटिल अंग है।

मस्तिषक के द्वारा शरीर के विभिन्न अंगो के कार्यों का नियंत्रण एवं नियमन होता है। अतः मस्तिष्क को शरीर का मालिक अंग कहते हैं। इसका मुख्य कार्य ज्ञान, बुद्धि, तर्कशक्ति, स्मरण, विचार निर्णय, व्यक्तित्व आदि का नियंत्रण एवं नियमन करना है। तंत्रिका विज्ञान का क्षेत्र पूरे विश्व में बहुत तेजी से विकसित हो रहा है। बडे-बड़े तंत्रिकीय रोगों से निपटने के लिए आण्विक, कोशिकीय, आनुवंशिक एवं व्यवहारिक स्तरों पर मस्तिष्क की क्रिया के संदर्भ में समग्र क्षेत्र पर विचार करने की आवश्यकता को पूरी तरह महसूस किया गया है। एक नये अध्ययन में निष्कर्ष निकाला गया है कि मस्तिष्क के आकार से व्यक्तित्व की झलक मिल सकती है। वास्तव में बच्चों का जन्म एक अलग व्यक्तित्व के रूप में होता है और जैसे जैसे उनके मस्तिष्क का विकास होता है उसके अनुरुप उनका व्यक्तित्व भी तैयार होता है।

मस्तिष्क (Brain), खोपड़ी (Skull) में स्थित है। यह चेतना (consciousness) और स्मृति (memory) का स्थान है। सभी ज्ञानेंद्रियों – नेत्र, कर्ण, नासा, जिह्रा तथा त्वचा – से आवेग यहीं पर आते हैं, जिनको समझना अर्थात् ज्ञान प्राप्त करना मस्तिष्क का काम्र है। पेशियों के संकुचन से गति करवाने के लिये आवेगों को तंत्रिकासूत्रों द्वारा भेजने तथा उन क्रियाओं का नियमन करने के मुख्य केंद्र मस्तिष्क में हैं, यद्यपि ये क्रियाएँ मेरूरज्जु में स्थित भिन्न केन्द्रो से होती रहती हैं। अनुभव से प्राप्त हुए ज्ञान को सग्रह करने, विचारने तथा विचार करके निष्कर्ष निकालने का काम भी इसी अंग का है।

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अभी तक हमने यह अपना मस्तिक क्या है यह जाना अब उसको कैसे नियंत्रित कर सकते है उसको तकद देख लेते है। पहले तो आपको ऊपर दिए गए सभी भावनाओ को दूर करना पड़ेगा। बाकी के नीचे दिए गए सभी नियमो का पालन करे।

  1. अच्छे माहौल का करें चुनाव – आप जिस माहौल में काम करते हैं, वह एकाग्रता को बढ़ाने में काफी महत्वपूर्ण होता है. आरामदायक और आकर्षक माहौल में काम करते समय पूरी तरह से एकाग्रता हासिल की जा सकती है.
  2. विचारों को नियंत्रित करें – कोई काम करते समय अपने मन में कोई और विचार न आने दें. इससे बेवजह आपकी एकाग्रता भंग होती है, इसके साथ-साथ मन उसमें लग जाता है. जब भी मन में काम से अलग कोई विचार आए तो उस पर ध्यान न दें और आप जो काम कर रहे हैं उनपर पूरी तरह से केंद्रित हो जाएं.
  3. टाइम प्लान बनाएँ – आपको जो काम करना है, उसकी सूची बना लें. इसमें संतुलन के लिए ज़रुरी है कि गंभीर काम को पर्याप्त समय दें. साथ ही इसमें कुछ पल फुर्सत के भी निकालें. ऐसा करने से आप काम से तो संतुष्ट होंगे ही, साथ ही आपका ध्यान भी कम भटकेगा.
  4. नकारात्मक न सोचें – मन में ऐसे विचार न आने दें कि आप खुद को एकाग्र न कर सकें. इससे दिमाग को यह सन्देश जाएगा कि आपमें एकाग्रता की कमी है. ऐसे में मन पर ध्यान केंद्रित करना और भी मुश्किल हो जाएगा.
  5. मल्टी-टास्किंग से बचें – एकसाथ एक से अधिक काम करने से कभी भी एकाग्रता हासिल नहीं की जा सकती. जब आपके सामने बहुत से काम का बोझ होगा तो आप जो काम कर रहे होंगे, उस पर ध्यान नहीं लगा पाएंगे. इसलिए कोई भी काम करने से पहले अपने मन को अच्छी तरह से शांत कर लें या कुछ देर meditaion कर लें. इससे काम में मन भी लगेगा और कम समय में अधिक कार्य भी हो जाएगा.
  6. शोर-शराबा न हो – ये काफी महत्वपूर्ण है कि आप जहाँ काम कर रहे हैं वहाँ ज़्यादा शोर-शराबा न हो. इससे आप अपने काम पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाएंगे. हालांकि ये बहुत लुभावना होता है कि आप अपने ई-मेल एलर्ट को on रखें, पर ये ध्यान रखें कि ये सभी आपको एकाग्रता हासिल करने से रोकेंगे.
  7. आहार तथा व्यायाम – एकाग्रता हासिल करने में संतुलित आहार और व्यायाम की भी अहम भूमका होती है. ज़रुरी पोषक तत्वों के अभाव से आपमें थकान और आलस्य आ सकता है. इसलिए विटामिन ई से भरपूर बादाम और फल को अपने आहार में शामिल करें. साथ ही रूटीन के तहत व्यायाम भी करें.
  8. काम को समझें – अगर आपको यह अच्छी तरह से मालूम न हो कि क्या करना है तो ऐसे में काम के प्रति एकाग्र होना और भी मुश्किल ह जाता है. जब काम मुश्किल होता है तो हमारा दिमाग एक आसान रास्ता ढूँढता है. ऐसे हम हम एक general overview बनाते हैं और हर काम शुरू करने से पहले एक आधारभूत अवधारणा और फ्रेमवर्क तैयार करते हैं.
  9. टाल-मटोल न करें – अपने अंदर किसी काम के प्रति टाल-मटोल की आदत कभी न डालें. यह एकाग्रता पर गहरा असर डालता है. जब तक कि आप अपने बोझिल कामों को निपटा न लें, अपनी सीट से न उठें.
  10. अपने पीक टाइम को पहचानें – हम सबके पास 24 घंटे में कुछ समय ऐसा होता है जब हम सबसे ज़्यादा चुस्त रहते हैं. हालांकि यह समय सबके लिए एक जैसा नहीं होता. आप भी ऐसे समय का पता लगाएं जब आप बिल्कुल चुस्त हों. आप ऐसे समय का इस्तेमाल पेचीदा काम या कम रूचि वाले काम को निपटाने के लिए करें.
  11. सकारात्मक रहें – जब भी आपको काम पर ध्यान केंद्रित करने की ज़रूरत हो तो हमेशा अपने आपसे बार-बार कहें कि आप ध्यान लगा सकते हैं. यह आपको एकाग्रता बढ़ाने में मददगार साबित होगा. कहने का मतलब है आप power affirmations की मदद ले सकते हैं. जल्द ही भविष्य में आपकी हर समस्या से सम्बंधित Power affirmations इस web site में डालने की पूरी-पूरी कोशिश की जा रही है.
  12. काम को बाँटें – जिस काम का कोई स्पष्ट आरम्भ और अंत न हो, वह आपके ध्यान को भटका सकता है. अगर आपके पास कोई बहुत बड़ा प्रोजेक्ट हो एक रास्ते का चयन करें जिससे आप उस काम को शुरू कर सकें.
  13. एकाग्रता के लिए व्यायाम – व्यायाम दिमाग और शारीरिक तालमेल को बेहतर बनाकर एकाग्रता क वापिस लाता है. किसी काम पर ध्यान लगाने के लिए आप क्वाइन ट्रिक और चेयर ट्रिक जैसे कई व्यायाम कर सकते हैं.
  14. योग – योग कोई उपचार नहीं है. अगर आप गंभीरतापूर्वक योग करेंगे और दिमाग पर नियंत्रण रखना सीखेंगे तो फर्क साफ़ दिखाई देने लगेगा. इससे धीरे-धीरे आपकी एकाग्रता बढ़ेगी.
  15. अनुशासन – अपने आपको अनुशासन में रखना बहुत ज़रुरी होता है. साथ ही प्रभावी काम करने के लिए ज़रुरी है कि आप उसमें ज़्यादा समय दें. इसलिए छोटे काम से शुरुआत करें और अगर आप आसानी से ध्यान नहीं लगा पा रहे हैं तो काम को पूरा समय दें.
  16. अपने दिमाग को प्रशिक्षित करें – अगर आप किसी विषय पर कुछ सैकिंड से ज़्यादा ध्यान नहीं लगा पाते हैं तो भी उस पर ध्यान बनाए रखिये. ऐसे में आप अपने दिमाग को किसी भी चीज़ पर लंबे समय तक के लिए केंद्रित कर सकेंगे.
  17. डेडलाइन तय करें – जब आप एकाग्रता बढ़ाने की कोशिश करे हैं तो इसमें डेडलाइन की अहम भूमिका होती है. डेडलाइन तय हो जाने से गैर-ज़रुरी चीज़ों को भूलना आसान हो जाता है और काम में तेज़ी भी आती है.
  18. अच्छी नींद लें – अपने सोने का समय सुनिश्चित करें. अगर आप अच्छी नींद नहीं ले रहे हैं तो आप पर थकावट और आलस्य हावी रहेगा. ऐसे में आप किसी भी काम पर ध्यान नहीं लगा पाएंगे.
  19. प्रगति पर रखें नज़र – अगर आपकी एकाग्रता बहुत ही खराब है तो हर हफ्ते थोड़ा-थोड़ा सुधार करने की कोशिश करें. अगर आपका ध्यान आधे समय के लिए भटक रहा है तो अगले हफ्ते इस समय को कम करने की कोशिश करें.
  20. ज़रुरी चीज़ों को व्यवस्था करें– इस बात को सुनिश्चित करें कि काम करने से पहले आपने उसके लिए ज़रुरी चीज़ों की व्यवस्था कर ली है. इससे अनावश्यक भटकाव नहीं होगा और आप स्थिर होकर काम कर पाएंगे.
  21. Exercises – इनके अलावा यदि आप ध्यान बढ़ाने वाली exercises की मदद लेंगे तो भी आपका ध्यान एक जगह बहुत देर तक टिक पाएगा, जैसे एक जलती हुई मोमबत्ती को कुछ देर तक एकटक देखते रहना, एक सेब की ओर लगातार बिना आँख हिलाए देखते रहना, त्राटक आदि. ऐसी सभी exercises ध्यान को बढ़ाने में बहुत मदद करती है.

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वैसे देखा जाए तो यह मन को कंट्रोल करना बहुत ही मुश्किल कार्य है परंतु अभ्यास से कर सकते है। इसमें धैर्य की अति आवश्यकता भी है। बिना धैर्य के यह नियंत्रित नहीं हो सकता। अपने दिमाग को नियंत्रित करने के लिए आप अपना ध्यान अगर किसी भावनाओ में फंसा हो तो दूसरी तरफ डाइवर्ट करे। किसी भी प्रकार की भावना आये तो समज जाना कहीं पर तो चूक हुई है। निचे थोड़े और नियम दिए गए है जरा उस पर भी नज़र डाले।

  1. सम्मोहन – अगर हो पाये तो सम्मोहन विद्या सीखे। खुद को सम्मोहित करने से आपका ध्यान बहुत ही अच्छा होगा और सभी भावनाओ से आप बचे रहेंगे। यह सम्मोहन का प्रयोग तब तक ही करे जब तक आप खुद के दिमाग पर नियंत्रण ना पा ले।
  2. क्लाइर्वोयन्स या दिव्यदृष्टि – यह सीखे। इससे आप किसी दूसरी दुनिया में खो सकते है तो सभी भावनाओ से मुक्ति पा लोगे।
  3. अन्तर्मन् – अंतर्मन में झांके। ऐसा करने से आपके अंदर एक गज़ब का आत्मविश्वास पैदा होगा जो आपके दिमाग को कंट्रोल करना आसान बना देगा।

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तो ऐसा करने से आपका दिमाग बहुत ही जल्दी से नियंत्रण में आ जायेगा। अगर आपने खुद का दिमाग नियंत्रित कर लिया तो समजना कि आपने आधी से भी ज्यादा जंग समाधी की जीत ली है और अब मंज़िल दूर नहीं। हाँ यह बात याद रखना धैर्य और लगन से ही यह कार्य हो सकता है। कभी कभी 1 साल में हो जाता है तो कभी कभी 10 साल भी लग सकते है। पर होगा जरूर अगर सच्चे मन से आप ठीक से कार्य करोगे तो।